नई दिल्ली:ऐसा माना जाता है कि भावों का संप्रेषण गद्य की तुलना में पद्य में कहीं अधिक प्रभावी ढंग से किया जा सकता है।
वैसे तो पद्य का लेखन तालपत्र, भोजपत्र, ताम्रपत्र, कागज आदि पर ही किया जाता है।
परंतु सनातनी पूर्वजों ने अपने पद्य का लेखन अत्यंत सुंदर कलात्मक ढंग से पाषाण शिला पर ही कर दिए हैं।
एक बार दृष्टि घुमा कर तो देखें….!
आप अपनी आँखों पर विश्वास नहीं कर सकते और आपके शब्द चुक जाएँगे।
आप निःशब्द हो केवल इस सौंदर्य को निहारते रहना चाहेंगे।
ये हैं सनातन वैदिक संस्कृति और कलाकृति का अद्भुत नमूना।
ये हैं हमारे सनातनी पूर्वजों की कालातीत और कल्पनातीत देन।
कोई भी शब्द न तो इसकी सुंदरता का वर्णन कर सकता है और न ही किसी को यह करने का प्रयास ही करना चाहिए।
क्योंकि ये नक्काशीदार छत अपनी सुंदरता के गीत स्वयं गाते हैं।
ये हैं नाकोड़ा मंदिर, राजस्थान॥
जब छत इतना सौंदर्यपूर्ण है तो सम्पूर्ण मन्दिर कितना वैभवपूर्ण होगा.??
कल्पना करने पर आप रोमांच से भर जाएँगे।
एक एक लघु मूर्ति की भाव भंगिमा, वाद्य यन्त्र, कमनियता अतुलनीय है।
कोई भी लघु मूर्ति एक दूसरे के समान रूप में नहीं है।
क्या कोई भी विश्वास करेगा कि यह निर्माण “छेनी हथौड़ी” से किया गया है.?
नहीं.! यह छेनी हथौड़ी से नहीं किया गया है।
इसके निर्माण कार्य की विधि कुछ और ही रही होगी..
परंतु यह निर्माण विधि विधर्मियों/मलेच्छों के सनातन संस्कृति के प्रति घृणा के भेंट चढ़ गया..
और नालंदा विश्वविद्यालय, विक्रमशिला विश्वविद्यालय, तक्षशिला विश्वविद्यालय के भग्नावशेषों में ही लुप्त होकर रह गया।
अपने महान सनातनी पूर्वजों और उनके धरोहरों पर गर्व करें.!!
अकल्पनीय सनातन धरोहर…!!